कलंकिनी
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रनिवास का विशिष्ट कक्ष !
महारानी कैकेयी के मुख पर भावों का विचलन स्पष्टतया दृष्टिगोचर था । कुछ भी निश्चित नही कर पा रही हों जैसे । विचारों का क्रम शरीर में एक उत्तेजना का संचार कर रहा था ।
".. हमारे दिल से आपके दिल तक ,/ बात निकली है तो जायेगी दूर तक ,/ ये 'किरण'जो चली है यहाँ से वहाँ तक ,/ रौशनी कर देगी वहाँ , पहुँचेगी जहाँ तक । " ----------- अश्विनी कुमार तिवारी
कलंकिनी
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रनिवास का विशिष्ट कक्ष !
महारानी कैकेयी के मुख पर भावों का विचलन स्पष्टतया दृष्टिगोचर था । कुछ भी निश्चित नही कर पा रही हों जैसे । विचारों का क्रम शरीर में एक उत्तेजना का संचार कर रहा था ।