Thursday, July 30, 2020

कलंकिनी

कलंकिनी

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रनिवास का विशिष्ट कक्ष !

महारानी कैकेयी के मुख पर भावों का विचलन स्पष्टतया दृष्टिगोचर था । कुछ भी निश्चित नही कर पा रही हों जैसे । विचारों का क्रम शरीर में एक उत्तेजना का संचार कर रहा था ।

Wednesday, January 1, 2020

महज तारीख नही


     महज तारीख नही

महज  तारीख नही  एक  जनवरी  हो तुम ।
जाने कितने दिलों की स्वप्न मंजरी हो तुम ॥

Tuesday, January 1, 2019

एक पन्ना और जैसे जिन्दगी का



एक पन्ना और जैसे जिन्दगी का

लो एक पन्ना और जैसे जिन्दगी का ,
पलट गया , मगर न जाने क्या हुआ ।
रोज जैसी ही लगे है , आज भी तो ,
तारीख ही बदली है , और क्या हुआ ॥

Friday, September 14, 2018

भारत की राजभाषा हिन्दी भाग 8



भारत की राजभाषा हिन्दी भाग 8

एक भाषा के रूप में हिन्दी एक ससक्त प्रज्ञावान प्राणवान और वैज्ञानिक भाषा है ! किसी भी अन्य भाषा को बोलना कई बार तो फिर भी आसान होता है पर जब बात लिखने की आती है वो अक्सर दूरूह ही लगती है ! हिन्दी के साथ सबसे अच्छी बात ये है कि इसका व्याकरण और वर्णमाला ऐसी है कि जैसी बोली जाएगी वैसी ही लिखी जाएगी और जैसी लिखी जाएगी वैसे ही पढ़ी भी जाएगी !
जहाँ तक शब्द भंडार की बात हो तो वो भी काफी समृद्ध है और इस हिन्दी के शब्दकोश का भंडार संस्कृत और भारतवर्ष के सभी भाषाओं से भी परिपूरित होता रहता है ! किसी भी भाषा के शब्दों को आत्मसात कर अपना बना लेनी की गजब की समावेशी प्रवृति भी है ! भारत ही नही सम्पुर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे अधिक समझे जाने वाली भाषा भी हिन्दी है ! हिन्दी के साथ एक और भी बड़ी रोचक बात ये है कि भारत के बिभिन्न हिस्सों मे बोली जाने वाली समृद्ध भाषाओं के बोलने वाले जब हिन्दी को बोलते है तो हिन्दी उनके टोन मे इस तरह घुल मिल के निकलती है कि लगता है जैसे एक नयी हिन्दी का ही निर्माण हो गया है ! जब विभिन्न भाषाभाषी आपस मे अपने अपने टोन मे भी जब सम्पर्क भाषा के रूप मे हिन्दी का व्यवहार करते है तो अलग अलग टोन होने के बाद भी सभी उस हिन्दी को इतने अच्छी तरह समझ लेते है कि विचारों के विनिमय मे कोई समस्या नही आती ! ये हिन्दी भाषा की ताकत है ! शुद्धतावादियों को थोड़ी तकलीफ हो सकती है मगर उन्हे ये समझना चाहिए कि हिन्दी का सम्पूर्ण विकास ही इसी क्रम मे हुआ है !

Thursday, March 22, 2018

कविता मादे विमर्ष भाग 3



कविता मादे विमर्ष भाग 3
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पिछला भाग मे चर्च कयने रही जे कविता के तीन अंग होईछ :  रस , गुण , आ अलंकार ! रस कविताक आत्मा आ गुण कविताक शरीर अलंकार कविताक श्रृंगार अछि ! अलंकार सँ कविताक सौन्दर्य मे श्रीवृद्धि होई छै ! अलंकार कविताक बड़ा महत्वपूर्ण भाग थिक धरि अनिवार्य अन्ग नहि थिक ! खाली शरीर आ आत्मा सँ व्यक्ति के निर्माण भ जेतै धरि विना वस्त्र आभूषण के केहन लगतै से कल्पना केनाए कठिन नहि ! अहिना बिना अलंकारयुक्त कविता कविता त हेतै मुदा ओहि मे विभव आ श्री के अभाव भ जेतै !
कविता के लिखबा काल मे हम सब जाने अंजाने अलंकार के प्रयोग करैत रहै छी बिलकुल स्वाभाविक ढंग सँ ! परिभाषिक दृष्टि सँ भले अलंकार सँ अनभिज्ञ रही धरि अपन सामर्थ्य वा ज्ञानारूप अपन कविता के सजबय के अलंकृत करय के प्रयास हम सब करिते छी !